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ऑर्गेनिक खेती

Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

बहु उपयोगी पेड़ सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि कई स्थानीय नामों से पुकारे पहचाने जाने वाले इस फलीदार वृक्ष की खासियतों के राज यदि आप जानेंगे तो आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा। किसान मित्र औषधीय एवं खाद्य उपयोगी कम लागत की इस पेड़ की खेती कर लाखों रुपए का लाभ हासिल कर सकते हैं। ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) यानी कि सहजन या मुनगा का वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa oleifera) है। जड़ से लेकर पत्तियों तक कई पोषक तत्वों से भरपूर इस पौधे का उपयोग रसोई से लेकर औषधीय गुणों के कारण प्रयोगशालाओं तक विस्तृत है।

उपयोग इतने सारे

सहजन या मुनगे की पत्तियों और फली की सब्जी को चाव से खाया जाता है। मुनगे की पत्तियां जल को स्वच्छ करने में भी उपयोग की जाती हैं।



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मुनगे की पहचान

एक हाथ या उससे अधिक लंबी आकार वाली मुनगे की फलियां खाद्य एवं औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। आम तौर पर बरवटी, सेम जैसी फलीदार सब्जियां बेलों पर पनपती हैं। जबकि मुनगे की फलियां वृक्ष पर लगती हैं। मुनगे के पेड़ के तने में काफी मात्रा में पानी होता है। सहजन के पेड़ की शाखाएं काफी कमजोर होती हैं। सहजन के फल-फूल-पत्तियों की बाजार में खासी डिमांड रहती है। इसकी पत्तियों के क्रय एवं निर्जलीकरण के लिए सरकार द्वारा कई तरह की योजनाएं संचालित की जाती हैं। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुनगे की खेती को प्रोत्साहित करने कृषि विभाग ने पत्तियों और फलों की खरीद से जुड़ी कई प्रोत्साहन योजनाओं को लागू किया है। उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण के अधीन मुनगा पत्‍ती रोपण के बारे में किसान कल्याण मंत्री से मुनगा पत्‍ती मूल्‍य अनुबंध खेती, किसानों के लिए इसमें समाहित अनुदान, प्रावधान से संबंधित सवाल किए जा चुके हैं।



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गौरतलब है कि बैतूल जिले में वर्ष 2018-19 में मुनगा की खेती के लिए किसानों के लिए प्रोत्साहन योजना लागू की गई थी। इसका लक्ष्य किसान से मुनगा पत्‍ती खरीदकर उन्हें लाभान्वित करना था। हालांकि सदन में यह भी आरोप लगा था कि, बैतूल के किसानों को 10 रुपए प्रति पौधे की दर से घटिया गुणवत्ता के पौधे प्रदान किए गए। यह पौधे मृत हो जाने से किसानों को लाभ के बजाए नुकसान उठाना पड़ा।

कटाई का महत्व

पौधे की ऊंचाई की बात करें, तो आम तौर पर सहजन का पौधा लगभग 10 मीटर तक वृद्धि करता है। चूंकि जैसा हमने बताया कि इसके तने कमजोर होते हैं, इस कारण इस पर चढ़कर फल, पत्तियों की तुड़ाई करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए लगभग 10 से 12 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर इसकी पैदावार करने वाले किसान इसकी हर साल इसकी कटाई कर डेढ़ से दो मीटर की ऊंचाई को कम कर देते हैं। इसके फल-फूल-पत्तियों की आसान तुड़ाई के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।

स्टोरेज कैपिसिटी

अपनी फलियों के आकार के कारण ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) कहे जाने वाले मुनगा पेड़ में उगने वाली फलियां ड्रम (पाश्चात्य वाद्य) बजाने वाली स्टिक (डंडी/छड़ी) की तरह दिखती हैं। मुनगा की कच्ची-हरी फलियां भारतीय लोग रसम, सांबर, दाल में डालकर या सब्जी आदि बनाकर खाते हैं। लगभग एक बांह लंबी डंडी के आकार वाली सहजन या मुनगा की फलियां तुड़ाई के बाद 10 से 12 दिनों तक उचित देखरेख में घरेलू उपयोग में लाई जा सकती हैं। साथ ही सूखने के बाद भी इसकी फलियों का चूर्ण आदि कई तरह के उपयोग में लाया जाता है।



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कितने गुणों से भरपूर

सहजन की पत्तियों से लेकर फलियां, छाल, जड़ तक बहुआयामी उपयोगों से परिपूर्ण हैं। मुनगा के बीज से तेल निकालकर भी उसे खाद्य एवं औषधीय उपयोग में लाया जाता है। सहजन की कच्ची हरी पत्तियों में पोषक मूल्य की मात्रा महत्वपूर्ण होती है।

USDA Nutrient database के अनुसार

सहजन में उर्जा, कार्बोहाइड्रेट, आहारीय रेशा, वसा, प्रोटीन की मात्रा ही इसे खास बनाती है। इसमें पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व से लेकर अन्य पोषक पदार्थ बहुतायत में पाए जाते हैं। एशिया और अफ्रीका में मुनगा के पेड़ प्राकृतिक रूप से स्वतः पनप जाते हैं। ड्रमस्टिक (Drumstick) एवं इसकी पत्तियां कम्बोडिया, फिलीपाइन्स, दक्षिणी भारत, श्री लंका और अफ्रीका के नागरिक खाने में उपयोग में लाते हैं। दक्षिण भारत के तमाम व्यंजनों में इसका अनिवार्यता से प्रयोग होता है। स्वाद की बात करें तो मुनगा का टेस्ट, मशरूम सरीखा महसूस होता है। छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारम्परिक दवाएँ बनायी जाती है। जमैका में इसके रस से नीली डाई (रंजक) के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है।



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सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके औषधीय अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि, तकरीबन तीन सैकड़ा से अधिक रोगों की रोकथाम के साथ ही इनके उपचार की ताकत मुनगा में होती है। मुनगा में मौजूद 90 से अधिक किस्मों के मल्टीविटामिन्स, कई तरह के एंटी आक्सीडेंट, दर्द निवारक गुण और कई प्रकार के एमिनो एसिड इसके प्राकृतिक महत्व को जाहिर करने के लिए काफी हैं।

कम लागत, कम देखभाल, मुनाफा पर्याप्त

स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या प्राइवेट फल-पौधों की नर्सरी से सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) के उपचारित बीज एवं पौधे क्रय किए जा सकते हैं। किसान मित्र मुनगा के पुराने पौधों की फलियों को संरक्षित करके भी उसके बीजों को बोकर पौध तैयार कर सकते हैं। हालांकि नर्सरी आदि में तैयार बीज एवं पौधे ज्यादा मुनाफा प्रदान करने में सहायक होते हैं, क्योंकि इस पर प्रतिकूल मौसम का प्रभाव कम होता है। इसके साथ ही नर्सरी या शासकीय विक्रय केंद्रों से बीज एवं पौधे खरीदने पर किसानों को मुनगे की पैदावार से जुड़़ी महत्वपूर्ण जानकारियां एवं सुझाव भी मुफ्त में प्राप्त होते हैं।



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बारिश अनुकूल मौसम

किसान मित्रों के लिए जुलाई-अगस्त का महीना मुनगा की खेती करने के लिए हितकारी होता है। बारिश का मौसम पौध एवं बीजारोपण के लिए अनुकूल माना जाता है। आमतौर पर वर्षाकाल बागवानी के लिए सबसे मुफीद होता है क्योंकि इस दौरान किसी भी पौधे को तैयार किया जा सकता है। https://youtu.be/s5PUiHTe82Q

बीज का ऑनलाइन मार्केट

ऑनलाइन मार्केट में भी कृषि सेवा प्रदान करने वाली कई कंपनियां मुनगा के बीज एवं पौधे रियायती दर पर उपलब्ध कराने के दावे करती हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोरिंगा (सफेद) बीज के 180 ग्राम वजनी पैकेट की कीमत 2 अगस्त 2022 को सभी टैक्स सहित ₹499.00 दर्शाई जा रही थी।

सहजन के लाभ एवं नुकसान

मुनगा के अंश का सेवन करने से मानव की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसमें भरपूर रूप से उपलब्ध कैल्‍श‍ियम की मात्रा साइटिका, गठिया के इलाज में कारगर है। हल्का एवं सुपाच्य भोज्य होने के कारण इसका खाद्य उपयोग लि‍वर की सेहत के लिए फायदेमंद है। पेट दर्द, गैस बनना, अपच और कब्ज की बीमारी भी मुनगा के फूलों का रस या फिर इसकी फलियों की सब्जी के सेवन से काफूर हो जाती है।



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हालांकि मुनगा जहां मानव स्वास्थ्य के लिए अति गुणकारी है वहीं इसके सेवन के कई नुकसान भी हो सकते हैं। मोरिंगा (सहजन) का असंतुलित सेवन शरीर में आंतरिक जलन का कारक हो सकता है। मासिक धर्म में महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए। प्रसव के फौरन बाद भी इसका सेवन वर्जित माना गया है।

मुनगा का बाजार महत्व

जैसा कि इसकी उपयोगिता से स्पष्ट है कि कच्चे फल, पत्तियों से लेकर उसके उपोत्पाद तक के मामले में सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) की तूती बोलती है। दैनिक, साप्ताहिक हाट बाजार, शासकीय निर्धारित मूल्य पर खरीद से लेकर शॉपिंग मॉल्स में भी इसकी डिमांड बनी रहती है। तो यह हुई कच्चे फल, पत्तियों के बाजार से जुड़़ी मांग की बात, अब इसके बाय प्राडक्ट पर नजर डालते हैं। दरअसल ऑर्गेनिक खेती से जुड़े उत्पाद की सेल करने वाली कंपनियां मोरिंगा (मुनगा) के उपोत्पाद भी रिटेल सेंटर्स के साथ ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर मुहैया कराती हैं। ऑनलाइन मार्केट में 100 ग्राम मोरिंगा पाउडर 2 सौ रुपए से अधिक की कीमत पर बेचा जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि, मुनगा की किसानी में कृषक को कितना मुनाफा मिल सकता है।

ऑर्गेनिक खेती से रेतीली जमीन उगल रही सोना

ऑर्गेनिक खेती से रेतीली जमीन उगल रही सोना

ऑर्गेनिक खेती की ओर किसानों का रुझान तेज़ी से हो रहा है. ऑर्गेनिक खेती से किसानों को दोहरा लाभ है, एक तो उत्पादन का मूल्य अधिक मिलता है और वहीं खेत की उर्वरा शक्ति बनी रहती है. हरियाणा में भी परंपरागत कृषि की तकनीक को छोड़कर कई किसान ऑर्गेनिक खेती (Organic farming) या जैविक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं. हरियाणा के चरखी दादरी के एक किसान हैं मनोहर लाल. मनोहर लाल अपनी रेतिले जमीन पर ऑर्गेनिक खेती तकनीक से खजूर व हल्दी उगाकर सबको अचंभित कर दिया है. यह कारनामा उन्होंने अपनी लग्न और नई तकनीक के बल पर कर दिखाया है. किसान मनोहर लाल ने आधुनिक ऑर्गेनिक खेती को अपना कर जो नजीर पेश की है, उससे वे अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत भी बन गए हैं.

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जानिए क्या है नए ज़माने की खेती: प्रिसिजन फार्मिंग चरखी दादरी जिले के गोपी गाँव के किसान मनोहर लाल ने परंपरागत खेती से अलग हटकर ऑर्गेनिक खेती कर ना केवल कई फसल उगाई है, बल्कि लाखों रुपये कमाई कर अपनी आर्थिक स्थिति भी मजबूत कर ली है. किसान मनोहर लाल के अनुसार 2016 से वह टमाटर, मिर्च, खीरा व हरी सब्जियों की खेती करते आ रहे हैं और बहुत अच्छा पैदावार प्राप्त कर रहे हैं. इसी के साथ वह हल्दी की खेती भी करते हैं, जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है.

ऑर्गेनिक खेती से ज्यादा लाभ

किसान मनोहर लाल ने रेतीली जमीन पर करीब पांच एकड़ रेतीली जमीन में खजूर के पेड़ लगाए हैं , जिससे बहुत जल्द ही फल मिलने शुरू हो जाएंगे. मनोहर लाल ने बताया कि खजूर के अलावा उन्होंने दो किस्म के प्याज भी लगाए हैं, जिसमें बहुत अच्छा पैदावार मिल रही है. मनोहर लाल ने बताया कि गेहूं व सरसों की फसलों में काफी मेहनत है साथ हीं इसकी खेती में पैसे की लागत भी ज्यादा है. लेकिन सब्जी की खेती में मेहनत तो है पर अच्छी पैदावार प्राप्त होती है.

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ओडिशा के एक रेलकर्मी बने किसान, केरल में ढाई एकड़ में करते हैं जैविक खेती आर्गेनिक खेती करके मनोहर लाल ने कम लागत पर ज्यादा पैसे कमाए हैं. उनके अनुसार आर्गेनिक खाद भी वे स्वयं तैयार करते हैं, जिससे सब्जी के पौधों को रोगों से बचाया जा सकता है. सबसे बड़ी बात ये है कि आर्गेनिक खेती स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होती है क्योकि ऑर्गेनिक खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं होता है. किसान मनोहर लाल ने बताया कि उन्होंने दो एकड़ में नेट हाउस का निर्माण कराया है, जिसमें हरी मिर्च लगाई गयी है. मनोहर लाल को सरकार की तरफ से सब्सिडी भी मिली है. उन्होंने 5 एकड़ में लगाए हैं जहाँ खजूर के एक पेड़ की कीमत 2600 रुपये है. सरकारी सब्सिडी के बाद इसकी कीमत 1950 रुपये रह जाती है. किसान मनोहरलाल की इच्छा हैं कि अन्य किसान भी इस तकनीक को अपनाएं और ज्यादा मुनाफा कमायें.

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ज्ञात हो की ऑर्गेनिक खेती में केमिकल फर्टिलाइजर की जगह ऑर्गेनिक खाद और बायो फर्टिलाइजर का प्रयोग होता है. पानी के भंडारण के लिए तालाब बनाए जाते हैं, जिसमें बारिश के पानी को स्टोर किया जाता है. इन तालाबों में मछली पालन भी किया जा सकता है. मनोहर लाल द्वारा किये जा रहे ऑर्गेनिक खेती से कई किसान प्रभावित होकर ऑर्गेनिक खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
अब बिहार के किसान घर बैठे पाएं ऑर्गनिक खेती का सर्टिफिकेशन

अब बिहार के किसान घर बैठे पाएं ऑर्गनिक खेती का सर्टिफिकेशन

बिहार में जैविक प्रमाणीकरण यानी ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन (Organic certification) का काम बसोका एजेंसी कर रही है। इसके पीछे कारण यह है, कि यहां पर किसानों को उनकी ऑर्गेनिक खेती के लिए उचित दाम दिलवाने की भरपूर कोशिश की जा रही है। ऑर्गेनिक या जैविक खेती कृषि का प्राचीन तरीका ही है, इसमें बिना किसी केमिकल आदि के प्राकृतिक तरीकों से खेती की जाती है। आजकल लोगों का रुझान इसकी तरफ काफी बढ़ा है, इसमें कम लागत में ज्यादा फसल उगाई जा सकती है और ये आजकल काफी डिमांड में भी है। लोग अपनी हेल्थ पर खास ध्यान दे रहे हैं और ऐसे में ऑर्गेनिक खेती ही उनका पहला विकल्प होता है, साथ ही यह खेती पर्यावरण के लिए भी अच्छी है। क्योंकि इससे वातावरण में किसी भी तरह के जहरीले पदार्थ नहीं छोड़े जाते हैं। किसान अगर ऑर्गेनिक खेती से ज्यादा पैसा कमाना चाहते हैं, तो वो अपनी फसल के लिए जैविक सर्टिफिकेशन बनवा सकते हैं। बिहार सरकार ने इसके लिए आवेदन मांगे हैं और इसकी प्रक्रिया भी आसान होती है।


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अब बिहार में ही प्राप्त करें सर्टिफिकेशन

पहले बिहार के किसानों को यह ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट सिक्कम से लेना पड़ता था। लेकिन अब बसोका एजेंसी खुद ही ये सर्टिफिकेट जारी कर रही है, किसान चाहें तो बसोका की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर ऑनलाइन आवेदन भी दे सकते हैं। साथ ही आप ऑफलाइन भी आवेदन दे सकते हैं।

बसोका क्या है?

रिपोर्ट्स की मानें तो केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के संस्थान कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) की ओर से ही बिहार राज्य बीज और जैविक प्रमाणीकरण एजेंसी (BASOKA) को मूल्यांकन कर राष्ट्रीय मान्यता बोर्ड को ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन (Organic Certification) के लिए मान्यता दी गई है। यह GMO टेस्टिंग करती है और साथ ही ये बीज की क्वालिटी का मूल्यांकन भी करती है। इसके अलावा सिर्फ बिहार ही नहीं, दूसरे राज्य के किसान भी बसोका की वेबसाइट पर आधार संख्या और बाकी की जानकारी देकर आवेदन कर सकते हैं। रिपोर्ट्स की मानें तो पटना के मीठापुर स्थित कृषि निदेशालय परिसर में प्रमाणन एजेंसी का कार्यक्षेत्र बिहार के साथ बंगाल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, असम और राजस्थान है। इस प्रकार से किसान अपना जैविक सर्टिफिकेशन कुछ आसान स्टेप्स में ले सकते हैं और उन्हें फिर अपनी फसल में दाम को लेकर किसी तरह की टेंशन लेने की जरुरत नहीं है। इसके तहत ऑर्गेनिक खेती का बहुत अच्छा दाम किसानों को दिया जाता है।
गाय के गोबर से बेहतरीन आय करने वाले 'जैविक मैन' नाम से मशहूर किसान की कहानी

गाय के गोबर से बेहतरीन आय करने वाले 'जैविक मैन' नाम से मशहूर किसान की कहानी

आज हम आपको जैविक खेती करने वाले एक किसान मुनिलाल महतो का कहना है, कि फिलहाल रासायनिक खाद 40 रुपये किलो तक की कीमत पर बिक रहा है। जैविक उर्वरक का भाव मात्र 6 रुपये प्रतिकिलो ही हैं। कीटनाशकों एवं रासायनिक खादों के इस्तेमाल से मृदा की उर्वरक शक्ति बेहद कमजोर पड़ती जा रही है। इससे खेत बंजर पड़ते जा रहे हैं। ऐसे में एक बार पुनः जैविक उर्वरकों की मांग में वृद्धि हुई है। लोग जैविक खाद के लिए काफी मोटी धनराशि खर्च कर रहे हैं। परंतु, इसके उपरांत भी किसानों को वक्त पर ऑर्गेनिक खाद प्राप्त नहीं हो पा रहा है। अब ऐसी स्थिति में बेगूसराय के मुनिलाल महतो जैविक विधि से खेती करने वाले कृषकों के लिए रोबिनहुड से कम नहीं हैं। वह किसानों को समुचित कीमत पर जैविक विधि से खेती करने वाले कृषकों को ऑर्गेनिक खाद मुहैय्या करा रहे हैं। विशेष बात यह है, कि जैविक खाद हेतु एडवांस में उनके पास आदेश पहुंच जाते हैं।

मुनिलाल महतो अपने इलाके में जैविक मैन के नाम से मशहूर हैं

हिंदी खबरों के मुताबिक, मुनिलाल महतो संपूर्ण इलाके में ‘जैविक मैन’ के नाम से मशहूर हैं। ध्यान देने वाली बात यह है, कि मुनिलाल किसानों को जैविक विधि से खेती करने का प्रशिक्षण भी देते हैं। अब तक वह क्षेत्र के सैकड़ों किसान भाइयों को प्रशिक्षण दे चुके हैं। ऐसे मुनिलाल महतो स्वयं भी जैविक विधि से खेती करते हैं। बतादें, कि साल 2013 से वह पूर्णतया ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इससे उनकी आमदनी बढ़ चुकी है।

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जैविक विधि से उत्पादों का बेहतरीन भाव मिल जाता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जनपद के चेरिया बरियारपुर प्रखंड के गोपालपुर पंचायत के किसान प्रमोद महतो का कहना है, कि मैंने भी उनसे ही प्रेरणा लेकर जैविक खेती करना चालू किया है। इससे मेरी भी आमदनी में इजाफा हुआ था। प्रमोद महतो ने बताया है, कि आज वे वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के साथ- साथ फ्लाईश खाद का भी उत्पादन कर रहे हैं। प्रमोद महतो के मुताबिक बाजार में जैविक विधि से पैदा किए गए उत्पाद का काफी अच्छा भाव मिल जाता है। इससे किसान वर्तमान में धीरे- धीरे जैविक खेती की ओर अपना रुख कर रहे हैं।

रासायनिक खाद कितने रुपए प्रति किलो बिक रही है

मुनिलाल महतो के अनुसार, बाजार में फिलहाल रासायनिक खाद 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रही है। लेकिन, जैविक उर्वरक का भाव केवल 6 रुपये प्रति किलो ही है। उन्होंने बताया है, कि रासायनिक खाद के इस्तेमाल से फसलों को 6 बार सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही, जैविक विधि से उत्पादित की गई फसलों को मात्र 3 बार ही सिंचाई की आवश्यकता पड़ता है।

जैविक खाद से वर्षभर में कितनी आमदनी की जा सकती है

फिलहाल, मुनिलाल के पास दो गायें हैं। इनके गोबर से वह जैविक खाद बनाते हैं। अपनी 2 एकड़ की जमीन पर वह जैविक खाद का ही इस्तेमाल करते हैं। साथ ही, शेष बचे हुए जैविक खाद की वह बिक्री कर देते हैं, जिससे उनको वर्ष में 60 हजार रुपये की आमदनी होती है। मुख्य बात यह है, कि मुनिलाल कीटनाशक के तौर पर गोमूत्र का इस्तेमाल करते हैं। इससे फसलों को भी किसी प्रकार की हानि नहीं होती है।
मिलेट्स की खेती करने पर कैसे मिली एक अकाउंटेंट को देश दुनिया में पहचान

मिलेट्स की खेती करने पर कैसे मिली एक अकाउंटेंट को देश दुनिया में पहचान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने एक भाषण में मिलेट्स की खेती को आने वाले समय में सबसे जरूरी बताया है। उनके अनुसार अगर पहले की तरह ही मिलेट्स की खेती को बढ़ा दिया जाए तो अंतरराष्ट्रीय खाद्य संकट खत्म करने में तो मदद मिलेगी साथ ही यह एक स्वस्थ जनरेशन बनाने में भी काम आएगा। इसी प्रस्ताव के चलते साल 2023 को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के रूप में मनाने वाली है। इस दौरान लोगों को मिलेट्स यानी मोटे अनाजों के बारे में जागरूक किया जाएगा।

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आपकी जानकारी के लिए बता दें, कि यह मोटे अनाज बहुत पुराने समय से हमारे देश में इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। लेकिन हाल ही के वर्षों में जंक फूड आदि को लेकर लोगों का रुझान इतना ज्यादा बढ़ गया कि मानों यह अनाज हमारे खानपान से गायब ही हो गए। लेकिन हाल ही में कोविड-19 लोगों को एक बार फिर से इनके गुणों के बारे में पता चला है और वह अपने स्वास्थ्य पर थोड़ा ज्यादा ध्यान देने लगे हैं। 

आज बीमारियों के दौर में इन्हें दोबारा आहार से जोड़ने की कवायद की जा रही है। मिलेट्स की खेती बढ़ाने के लिए बहुत से किसान और स्टार्टअप भी काम कर रहे हैं। ऐसे में बहुत से नौकरी पेशा वाले लोग भी इस खेती की ओर आकर्षित हुए हैं और उनमें से ही एक हैं केवी रामा सुब्बा रेड्डी। इन्हें आज आंध्र प्रदेश के मिलिट मैन के नाम से जानते हैं। केवी रामा सुब्बा रेड्डी बाकी लोगों की तरह ही दिल्ली में एक अकाउंटेंट का काम करते थे, लेकिन आज मिलिट्स के रेडीमेड फूड प्रोडक्ट्स की नामी एग्रो कंपनी सत्व मिलिट एंड फूड प्रोडक्ट्स के मालिक हैं और बाजार में होल ग्रेन्स की दूसरी नामी कंपनियों रेनाडु और मिबल्स को कड़ी टक्कर दे रहे हैं।

कैसे शुरू हुआ सफर

केवी रामा सुब्बा रेड्डी खेती को करने के लिए दिल्ली में अपनी अकाउंटेंट की नौकरी छोड़ कर अपने गांव नंदयाल चले गए और अपनी ही जमीन पर माता-पिता और दो भाईयों के साथ मोटे अनाजों की खेती करने लगे।

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कुछ समय बाद ही बाजरा की प्रोसेसिंग चालू कर दी और बाजार में एक व्यापारी बनकर उतर आए। सबसे पहले उन्होंने अपोलो हॉस्पिटल के मरीजों को पोषक अनाजों से बना सप्लाई करना चालू किया। इसीका नतीजा है, कि मिलिट्स की दो बड़ी कंपनियां मिबल्स और रेनाडु को भी टक्कर दे रहे हैं। हर फूड एक्जीबीशन या मिलिट्स से जुड़े हर प्रोग्राम में सुब्बा रेड्डी की कंपनी सत्व मिलिट्स के प्रोडक्ट्स खूब नजर आते हैं।

कैसे मिली प्रेरणा

केवी रामा सुब्बा रेड्डी के पास एमबीए और एफसीएमए की डिग्री के साथ कॉर्पोरेट का 27 साल का एक्सपीरियंस भी है, जो उन्हें आज एग्री बिजनेस में पैसा और नाम कमाने में मदद कर रहा है। उनका रुझान कुछ सालों से गांव की तरफ बढ़ रहा था, इसलिए ही उन्होंने साल 2014 में अपने पुश्तैनी गांव के पास 20 एकड़ जमीन खरीद ली थी। जमीन खरीदने के बाद उनका खेती करने का कोई इरादा नहीं था, इसलिए वह दिल्ली वापस लौट आए। लेकिन हमेशा ही उनके मन में कुछ ना कुछ अलग करने की चाहत थी और इसी चाह ने रामा को एक बहुत बड़ा व्यापारी बना दिया। पहले उन्होंने अपने काम को बीच-बीच में छोड़कर ऑर्गेनिक खेती की लेकिन साल 2017 के बाद वो हमेशा के लिए अपने गांव लौट आए और भारत के 'भारत के मिलिट मैन खादर वल्ली' (Millet Man of India) से प्रेरित होकर मिलिट्स की खेती करने का मन बनाया।

मिला बेस्ट स्टार्ट अप का अवॉर्ड

केवी रामा सुब्बा राव अपनी कंपनी सत्व मिलिट्स और खाद्य उत्पाद के जरिए प्रोटीन फूड बनाते रहे। इनकी यूनिट में बने उत्पादों की खास बात यह थी, कि ज्यादातर ग्लूटन फ्री उत्पाद थे, जो सेहत के लिए हर तरह फायदेमंद रहते हैं। यही वजह है, कि आज देशभर में सत्व मिलिट्स के फूड प्रोडक्ट्स पंसद किए जा रहे हैं। बड़े पैमाने पर मिलिट्स प्रोडक्ट्स की आपूर्ति के लिए केवी रामा सुब्बा रेड्डी को ANGRAU- RARS नंदयाल से 'सर्वश्रेष्ठ प्रगतिशील किसान' पुरस्कार और हैदराबाद के ICAR-IIMR से 'सर्वश्रेष्ठ स्टार्टअप किसान कनेक्ट' अवॉर्ड मिल चुका है। हालांकि कोविड-19 ने इनकी कंपनी को नुकसान भी हुआ था। लेकिन रामा ने अपनी उम्मीद नहीं छोड़ी और वह अपने इस सपने की तरफ से पूरी तरह से लगे रहे और आज वह इस मुकाम पर पहुंच गए हैं।